पंडित धर्मदेव विद्यामार्तण्ड आर्यसमाज गुरुकुल कांगड़ी के स्नातक, मुल्तान गुरुकुल में आचार्य, दक्षिण भारत में आर्यसमाज के प्रबल प्रचारक, सार्वदेशिक पत्रिका के संपादक, वेदों के प्रकांड पंडित एवं स्वामी श्रद्धानन्द के महान शिष्यों में से एक रहे हैं।
पंडित जी जीवन भर “इदं न मम् ” की यज्ञ भावना का अनुसरण करते रहे। वेदों में पंडित जी की रूचि सबसे अधिक थी। “वेदों का यथार्थ स्वरुप” पंडित जी की महान कृतियों में से एक हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में 29 अध्याय हैं जिनमें लेखक ने सामाजिक, राजनितिक, धार्मिक समस्यायों का समाधान वेदों के आधार पर दर्शाया हैं। वस्तुत ऐसे पढ़कर ऐसा लगता हैं की वेदों द्वारा विश्व की कठिन से कठिन समस्यायों का समाधान निकाला जा सकता हैं परन्तु हम इस तथ्य से अभी तक अनभिज्ञ ही हैं।
आज समाज दिशाहीन होता जा रहा हैं। इस दिशाहीनता का सबसे बड़ा कारण अज्ञानता हैं। ईश्वरीय वाणी वेद में ही इस अज्ञानता को दूर करने की क्षमता हैं। मेरे विचार से इस पुस्तक को हर गृहस्थी अपने घर में पढ़े जिससे पारिवारिक समस्यायों का समाधान हो, हर समाज चिंतक पढ़े जिससे समाज का समस्यायों का समाधान हो, हर राजनीतिज्ञ पढ़े जिससे राष्ट्र की समस्या का समाधान हो सके। पुस्तक की विशेषता इसमें वेद मन्त्रों के अतिरिक्त सन्दर्भ एवं उदहारण आदि हैं जो कठिन विषय को समझने में सहायता करते हैं।
लेखक का स्वाध्याय एवं चिंतन पंक्ति पंक्ति में प्रकाशित हो रहा हैं। यह पुस्तक आर्यसमाज के इतिहास में कालयजी ग्रंथों में से एक हैं यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। सुन्दर छपाई एवं यथोचित मूल्य इस पुस्तक की एक और विशेषता हैं।
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Paper Back
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21.5
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14
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3.5
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2014
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764
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